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Manju Saini

Inspirational

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Manju Saini

Inspirational

शीर्षक: कच्ची माटी

शीर्षक: कच्ची माटी

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कच्ची माटी सा तन मन मेरा

प्रीत में तुमने रंगा उसको

चढ़ी रंगत उस पर तुम रंगते रहे

कच्ची माटी सा चढ़ गया तुम्हारे प्रीत का रंग

एक घड़े समान ही मानो कुम्हार रंगा हो उसको

उसके बाहरी रूप को संवारने के लिए कि

रंगत वह गहरे असर डाले अपने चाहने वाले पर

बस उसी तरह तुमने छोड़ी प्रीत की छाप

कच्ची माटी सा तन मन मेरा

प्रीत में तुमने रंगा उसको

मेरे अंतस पर नेह रंग कहीं न कहीं गहरा गया

इतना गहरे रंगा की अब छाप स्वयं की पहचान 

मैं उन रंगों की छवि में देख पाती हूँ स्वयं की

मन की अंतस की दीवारों पर रंगों की पहचान  

कौन से रंग थे यह नहीं देखती बस प्रीत तुम्हारी 

अपने में विस्मृत यादों की वादों की प्रीत तुम्हारी

तुम्हारे लिए वो रंग मात्र मन बहलाव की बात थी

कच्ची माटी सा तन मन मेरा

प्रीत में तुमने रंगा उसको

रंगों का कृत्रिम रूप समझकर तुमने उन्हें व्यर्थ 

मुझ में इस्तेमाल कर आहत किया शायद कही 

और मैंने तो सारे रंगों को प्रीत समझ संजो रखा

वास्तविक समझ रंग डाला शायद आपने मुझको

अपनी रूह को रंगा पाया आपकी स्नेह छाया में

अब लगता हैं मानो रंग कर खो गया मेरी प्रीत का

कल्पना भरी प्रीत में शायद कमी रही कूची की

कच्ची माटी सा तन मन मेरा

प्रीत में तुमने रंगा उसको

उकेर नहीं पाए सही से दिए कुदरत जे रंग 

उन्हीं रंगों में डुबोकर मैंने परत पाई थी अपनी

तूलिका मेरी सूक्ष्म कल्पनाओं को रंग नहीं पाई

मेरे अंतस की भित्तियों पर आज की प्रीत के रंग 

अनन्त कोमल भावनाओं को प्रीत में भीगे पाते हैं

रंग भर प्रीत का तुमने सार्थक किया था संबंध 

लंबे अंतराल के बाद चढ़ा है आज भी प्रीत रंग

कच्ची माटी सा तन मन मेरा

प्रीत में तुमने रंगा उसको।



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