शब्दों की रेखायें
शब्दों की रेखायें
शब्दों से मनुष्य ने
लक्ष्मण रेखायें बनायी थीं
फिर लक्ष्मण रेखा खींचने वाले
रेखाओं में छिप गये।
फिर मनुष्य ने मिटा दिया रेखाओं को
आ गया भावनात्मक अराजकता का
ये चलता हुआ युग,
और फिर मनुष्य सोच रहा है।
लक्ष्मण रेखा तो होनी चाहिये
झूठ और सच के बीच,
धर्म और अधर्म के बीच,
नफरत और प्रेम के बीच,
शांति और अशांति के बीच
व्यवस्था और कुव्यवस्था के बीच।
लेकिन सोचने भर से क्या होगा
चलो तो विपरीत भावों के
अंतिम सिरों को
एक जगह मिलाते हैं
और वहीं खड़े होकर एक बार फिर
नयी रेखाएं बनाते हैं।