शब्दों के मोती
शब्दों के मोती
मानुष तन अनमोल अति, मधुर वचन नित बोल।
रहो परस्पर प्यार से, जन -मन मधुरस घोल।।
जन-मन मधुरस घोल, जीवन सुज्योति जलेगा।
होगा कर्म अकर्म, हृदय में पुण्य फलेगा।।
कह बाबू कविराय, कुचलो पाप अधर्म फन।
पुनः मिले ना मिले, सोच लो यह मानुष तन।।
देना सुख से प्यार को, यही परम सौभाग्य।
क्षण भंगुर जीवन अहा, जाग सके तो जाग।।
जाग सके तो जाग, अन्त पछतावा होगा।
तन निरोग का राज, कर व्यायाम नित योगा।
कह बाबू कविराय, सृष्टि की यह है सेना।
भव से होगा पार, प्यार सबको ही देना।।
सुधरेगा अग-जग तभी, मन जब निर्मल होय।
भला -बुरा के फेर में, जात अकारथ दोय।।
जात अकारथ दोय, जग जंजाल हो जाता।
करता जैसा कर्म, जीव फल उसका पाता।।
कह बाबू कविराय, दुराव से ही डरेगा।
जग में निश्चित मान, वही मानव सुधरेगा।
सर्वोपरि परमार्थ है, सरस सुखद जग जान।
यही स्वर्ग सोपान सुचि, अग-जग में पहचान।
अग -जग में पहचान, मनुष्य परमार्थ करना।
जीवन लक्ष्य महान, ध्यान प्रभु जी का धरना।।
कह बाबू कविराय, करो कुछ भी तज स्वार्थ।
हर पल जप हरि नाम, तभी होगा परमार्थ।।
