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Baburam Shing kavi

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Baburam Shing kavi

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शब्दों के मोती

शब्दों के मोती

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घूसखोर  सिरमौर  है , जनता है  लाचार।  

शिक्षा तक मुश्किल हुई, जीना भी बेजार।।

दिन-दिन बढ़ती जा रही,मंहगाई की मार।

दिग्विजयी  झूठे हुए , सत की होती हार।।


धर्म - कर्म  कैसे बचें, मानवता शुभ प्यार।

माली  बाग  उजाड़ता , डोली  हरे कहार।।

कई  विदेशी  कम्पनी , पाँव  रही फैलाय।

जेबों  में भरने लगी ,भारत माँ की आय।।


आज विदेशी भी यहाँ, निज पग रहे पसार।

अबलायें निज लाज हित,करती रोज पुकार।।

जिसको  देखो  गा  रहा , अंग्रेजी  के गीत।

हिन्दी भाषा राष्ट्र की ,नहीं किसी को प्रीति।।


अंग्रेजी  की  बाढ़  है , भारत  में बरिआर।

हिन्दी हित पर ना करे ,कोई आज विचार।।

सभी को दे सुख सम्पति,जगकल्याणी गाय।

गौ पालन सेवा बिना ,न सुखदायी उपाय।।


जिसको माँ कह कर सभी ,देते हैं सम्मान।

वही  गाय कटती  यहां , कैसा हिन्दुस्तान।।

यश लिप्साहित छलकपट,स्वार्थरत सबकोय।

बेच रहे निज अमन सब ,कैसे चलना होय।।


स्वार्थरथ में बैठ  कर , देते जग को कष्ट।

जिस शाखा पर हैं चढे़ ,करें उसी को नष्ट।।

निज मनको माने सभी अपना आपा खोय।

सुख की ही आशा करें,दुख के बिरवा बोय।।


संस्कृतिकी क्षति हो रही,गयी सभ्यता स्वर्ग।

अब तो हावी हो रहा ,हम पर पश्चिम वर्ग।।

विश्वगुरू के नाम से ,था जग में विख्यात।

वहीं शिष्य बन मांगता,पश्चिम से सौगात।।


गत गौरव के प्राप्ति हित,करें प्रयत्न विशेष।

पाये हर पल आपदा ,अपना भारत देश।।

आओ मिल गायें सभी,देश भक्ति का गान।

देश  क्लेष  के  सामने , हो  जायें कुर्बान।।


राष्ट्र धर्म भूलें नहीं ,करे न अनुचित काम।

प्रगति देश की हो तभी,सभी करें निज काम।।

पहले सोचें देश हित,फिर निज करें विचार।

आपसके सहयोग से, सब कुछ होय सुधार।।


जन मानस निर्मल  बने , बढे़ प्रेम सद्भाव।

दुश्मन भी आदर करें , ऐसा बने स्वभाव।।

निज सुधार जन-जन करें,धरें धर्म पर पांव।

आओ बाबूराम कवि , देकर सत्य सुझाव।।



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