शब्दों के मोती(बसेरा)
शब्दों के मोती(बसेरा)
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खिड़की हो या किवारे,
रोज़ सुबह खटखटाते हो।
मंदिर में घुस कर प्रसाद खाते हो।
छज्जे पे घोंसला बनाए हो।
चहचहाकर ढ़ेर सारी बातें करते हो।
सब समझते हो।
जबतक मेरे आवाज सुनोगे नहीं, तसल्ली नहीं।
बच्चों की तरह ज़िद।
बेटा तो चला गया।
आसमान में बसेरा ढूंढ लिया वहीं।
बुढ़िया के ऊपर तुम्हारे दया आ गई।
बसेरा ढूंढ लिए यहीं।
मेरे छज्जे पे कहीं।