शब्दों का मायाज़ाल
शब्दों का मायाज़ाल


शब्दों का मायाजा़ल हैं आवाजें,
कभी शब्दरहित भी होती हैं आवाजें।
आवाज़ों की माया कुछ ऐसी-
कभी खामोशी में शोर करती हैं,
और शोर में गुम हो जाती हैं,
गौर से सुनने पर,
आवाज़ें मतलब की हो जाती हैं,
न सुनने पर बेमतलब ही रह जाती हैं।
आवाज़ों की जादूगरी भी ऐसी--
कभी अंधेरे में सिरहन जगा देती हैं,
तो उजाले में मुस्कुराहट खिला देती हैं,
एकांत में अपने आप से मिला देती हैं,
और भीड़ में सबसे दूर कर देती हैं।
मन को छू लेने वाली आवाज़े,
दिल दहला देने वाली आवाज़े,
बंद कमरे में सिसकने की आवाज़ें,
रात के सन्नाटों की आवाज़ें ,
और बहुत सी आवाज़ें----- ।
जादुगरनी और मायावी होती हैं आवाजें,
तरह तरह का भेस बना लेती हैं आवाज़ें,
हर साज़ के साथ बदल जाती हैं आवाज़ें,
अपने जाल में उलझा लेती हैं आवाज़ें।