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Sanju Srivastava

Abstract

4.6  

Sanju Srivastava

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शहर में बारीश

शहर में बारीश

1 min
330


स्वच्छता के साथ साथ

हमारे शहर को सुदंर बनाने

का अभियान कुछ ऐसा चला

कि पहली बारीश में ही

पोल पट्टी खुल गई।

नाला बना, सड़कें बनीं

हरे नीले कचरे के डब्बे दिखे

पुराने तालाबों की

खोज बीन शुरू हुई ।

बडे़ बडे़ पेड़ लगे

गमलों में पौधे दिखे

और शहर हमारा सुदंर हो गया।

एक दिन धीमे से डरते डरते

बारीश ने हमारे शहर में कदम रखा

जैैसे जानती थी आगे क्या होगा

धीमे धीमे बरसती रही।

सोचा बहुत हो गया

चलूंँ तालाब से मिल आऊं

तालाब न पा नाले की तरफ बढ़ी

कचरे ने चिल्ला कर कहा

खबरदार जो मेरे घर में घुसी

बेचारी बारीश, रात में

नयी बनी सड़क पर ही बैठ गई

सुबह देखा तो सड़क ही धंस गई।

बारीश चल पड़ी पेड़ पौधों से मिलने

देखते ही पेड़ पौधे चिल्लाये

हम तो यूं ही खड़े हैं

जरा जरा से पानी से जड़े है़

न लग सकेगें तुम्हारे गले

कि बस गिर पडे़गें अभी।

लोग भी थे परेशान

जाओ भी , बहुत बरस गयी

घर बाहर

पानी ही पानी

जीना कर दिया मुश्किल।

हताश निराश बारीश

गाँव की ओर निकल पडी़

किसानों ने कि खूब आवभगत

खुश हो कर बारीश

खेतों पर बरसती रही

हरियली बिखेरती रही ।

हमारा शहर

बिन पेड़ पौधों के

सिमेंट का जगंल बन गया

और लोग कहते हैं कि

हमारा शहर सुदंर हो गया।



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