शब्द
शब्द
किताब के हर पन्ने पर जिंदगी ने कुछ लिखा है।
लेकिन मेरा पन्ना कहां छिपा है।
कई अच्छे शब्द गुम है जिंदगी से।
इन्हें ढूंढने को अक्सर हम किताब उठा लेते हैं।
जज़ा दोगे या सजा दोगे।
इस जिंदगी को क्या उनवान दोगे।
इस नमी की ही तो कमी थी।
वरना दरिया में पानी तो बहुत था।
गाहे-बगाहे दूसरों के घर जाना अच्छा होता है ।
बरकत के दायरे में इजाफा होता है ।
माना कि अकेले आए थे
और अकेले जाना है।
जिंदगी में लेकिन
सबका साथ निभाना है।
घर बनाने की तमन्ना में बैठे थे
देर तलक मुट्ठी में रेत लेकर।
दीवारें तो मजबूत हुई लेकिन
घर कच्चा रह गया ।
गम मिलते हैं पर कम मिलते हैं
अपने जब सब मिलते हैं।
देर तक लड़े थे खूब ।
तीसरे की दखलंदाजी लेकिन
सह न सके।
एक दूसरे से वह दूर कभी हो न सके।
जिंदगी भर मिसालों के घेरे में रहे।
अपने भी लेकिन अब अपने नहीं रहे।
अपनों की कमी हर वक्त खली है।
इसीलिए तो जिंदगी में इतनी नमी है।
खामोशी शब्दों का अस्तित्व नकारा कर देती है।
अंदर का शोर लेकिन आंखें बता ही देती है।
कभी परिंदे सी उड़ती है तो कभी दरिया से बहती है।
यादें हैं जनाब कहां रुकती हैं।
कोई कब अकेला होता है ।
तनहाई का सबको साथ होता है।
शांति मेरी अशांति ले गई।
सिमटी तहें मानो
खुद-ब-खुद खुल गई ।
आपकी नजर का अंदाज है
या आपका नजर अंदाज ।
क्या खूब आपका अंदाज है।
खट्टे से, मीठे से, कभी तीखे से दिखे पापा ।
हर जायके में कुछ अलग दिखे पापा।
संतुलित रहकर संतुलित बना गए पापा।