शब्द
शब्द
मेरे अंतर्मन मे
छिपे हैं
कई शब्द,
जो गढ़ते हैं
नित नए अर्थ
अनुभवों की परिभाषा,
जो खेलते हैं मुझसे
करते हैं अनाप शनाप बातें
बड़ी बेबाकी से,
और सुनाते हैं
मुझे बेहिचक निरंतर
अपनी ही भाषा में,
सुबह से शाम तक
लगातार बेहिसाब
गूढ़ रहस्यों की बारीकी,
वो अपने हैं
इसलिए खुले हैं मुझसे
बुरा नहीं मानते मेरे
इंकार पर भी,
देते हैं वो मुझे नए नए
अर्थ शब्दों की अलग ही दुनियां में,
जो सच्चे हैं
मुझे इस मेरे एकाकीपन में
निभाते हैं साथ
जब मैं भीड़ से घबरा जाता हूं
अकेला पड़ जाता हूं
मेरे अंदर का विश्वास टूटने लगता है
और मैं मौन हो जाता हूं,
तब ये शब्द सही मायने में
मेरे करीब होते हैं
समझते हैं मेरे
मर्म को
खोजते हैं मेरे साथ
उन तमाम मुश्किलों के हल
जो जरूरी है
इस जीवन के हर उन
पहलुओं को जीने के लिए
जो अनिश्चित है
बांधे नहीं जा सकते
पर
मेरा वजूद
भी इनसे ही है।