शौर्य
शौर्य
अब तक था अप्राप्य, अछूता
उस मंजिल की ओर बढें
आओ हम सब मिलकर
शौर्य की नई परिभाषा गढ़ें
धरती के सीने को चीरता
जैसे हो बलराम का हल
जीवन-स्त्रोत से ओत-प्रोत
है किसान का आत्मबल
रह जाए न कोई भूखा
कृषक की ये साध सधे
आओ हम सब मिलकर
शौर्य की नई परिभाषा गढ़ें
चीर कर अम्बर का सीना
ऊपर बढ़ता भवन विशाल
हाड़-तोड़ मेहनत हैं करते
मजदूरों का शौर्य कमाल
धरती के साए से उठकर
स्वर्ग की सीढ़ी चढें
आओ हम सब मिलकर
शौर्य की नई परिभाषा गढ़ें
आते-जाते हमने देखा
रेल-सड़क का फैला जाल
धमनी में ज्यूँ रक्त है बहता
ड्राईवर सदा ही चलता रहता
पलक न झपके मंजिल तक,
उसके हैं हर कदम सधे
आओ हम सब मिलकर
शौर्य की नई परिभाषा गढ़ें।