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Rajesh Kamal

Abstract

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Rajesh Kamal

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शौर्य

शौर्य

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अब तक था अप्राप्य, अछूता

उस मंजिल की ओर बढें

आओ हम सब मिलकर

शौर्य की नई परिभाषा गढ़ें


धरती के सीने को चीरता

जैसे हो बलराम का हल

जीवन-स्त्रोत से ओत-प्रोत

है किसान का आत्मबल


रह जाए न कोई भूखा

कृषक की ये साध सधे

आओ हम सब मिलकर

शौर्य की नई परिभाषा गढ़ें


चीर कर अम्बर का सीना

ऊपर बढ़ता भवन विशाल

हाड़-तोड़ मेहनत हैं करते

मजदूरों का शौर्य कमाल


धरती के साए से उठकर

स्वर्ग की सीढ़ी चढें

आओ हम सब मिलकर

शौर्य की नई परिभाषा गढ़ें


आते-जाते हमने देखा

रेल-सड़क का फैला जाल

धमनी में ज्यूँ रक्त है बहता

ड्राईवर सदा ही चलता रहता


पलक न झपके मंजिल तक,

उसके हैं हर कदम सधे

आओ हम सब मिलकर

शौर्य की नई परिभाषा गढ़ें।


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