शौक
शौक
दुनिया ये तेरी मेरी, फर्क फकत की यूँ है,
ना आरजू है, ना कोई जुस्तजू है।
दियारे खुप्तागा माफिक, है मंजर कायनात के,
ताउन से भी मुश्किल तबियत हालत के।
ना बहती हर सहर, मर्सत बयार सी,
शामें है शामें हिज्र, रातें सबे फिराक की।
ऐ खुदा तू ही जाने, ये उकदाय हो कायनात,
यहाँ ईब्लिश गालिब, वहाँ काफिरों की जामत।
सजदे तो मैं भी रखता तेरी रहगुजर में ऐ मबुद,
कि तल्खी ऐ जिस्त से, दिल भारी दिमाग उब।
अब चलो चलें पूरा करने, अपने अपने शौक,
तू पैदा कर नस्लें आदम मैं मुकर्रर अपनी मौत।