शास्वत
शास्वत
आज से इस जीवन में
द्वार नया खुल गया।
अतरंगी कलरव को
नव आलय मिल गया।
केतकी, गुलाब, जूही
एक सूत्र निध गए।
आलय के द्वार पर
स्वागतध्वज चढ़ गया।
कदम-कदम चलने से
क्षितिज छू के आने तक।
मृदुल- सख्त अनुभव का
ताना-बाना बन गया।
जीवन की धूप-छांव
अंजुरी में सिमट गई।
शास्वत हर लम्हों को
पृष्ठ नया मिल गया।
सुजला हो, सुफला हो
साथियों की डगर-मगर,
कहीं हो जरूरत तो
नाम मेरा जुड़ गया।
बदलेगी दिनचर्या
बदलेगी सुबह-शाम।
मंदिर की देहरी को
इक भक्त नया मिल गया।
जीवन की हाला में
स्वांसों की माला का।
जब तक भी हो प्रवाह
नव मुक्तक मिल गया।
