शांत सरोवर
शांत सरोवर
स्त्री मन कमसिन चितवन,
हर उम्र में खिले, बन 'मधुवन'
नारी एक रूप अनेक
हर रूप मे चमके मोती बन।
बेटी बन घर -आँगन महकाये,
बहना बन भाइयों को समझाये,
हुई जवान तो माँ मन हर्षाये,
पिता के कंधों पर' विदा'
करने की जिम्मेदारी आये।
हुआ विवाह बन की कुलवधू ,
नया जन्म, मिली नयी खुश्बू
आँगन नया माली नया,
स्त्री मन उसमें पल -पल खोया,
जिंदगी को एक सुकून मिला,
अपने अंदर जब एक अंकुर मिला।
वो अंकुर 9 महीनों बाद पौधा बना,
स्त्री को फिर एक नया जन्म मिला।
भूल गयी वो सब पीड़ा,
उस पौधे को अपने तन-मन से सींचा
स्त्री जीवन बहुत विशाल है
स्त्री दिल ममता का दरबार है।
स्त्री का सम्मान करो
स्त्री बिना घर-आँगन उदास है।
