सेवक
सेवक
सुशासन, स्वच्छता,
भ्रष्टाचार मुक्ति
और विकास
का मुद्दा ना
जाने कहाँ
सिमटकर रह गया ?
अब तो उसकाना,
बंटवाना और
धमकाना ही इन
चुनावों का मंत्र
बन गया !
स्वच्छ इंडिया,
मेक इन इंडिया,
स्टार्ट अप इंडिया,
स्किल इंडिया
की बात को
हम भूल गए
स्वच्छ राजनीति
के लक्ष्यों
से भटककर
मर्यादा को
भूल गए !
अब " राष्ट्रवाद "
का भूत
हमारे सर पे
चढ़कर
बोल रहा !
विकास का
ढोल कुछ क्षण
बजने के बाद
फूट गया !
दुःख तो
पीड़ितों का
हम हर ना सके !
सेवक की बातें
तो दूर रही
चौकीदार भी
अच्छे बन
ना सके !
सम्प्रदायिकता
मोब लयाँचिंग
असहिष्णुता
नारी सुरक्षा
आतंकवाद
को हम
सुधार ना सके ,
आपदा पीड़ितों
के परिवारों के
आंसू पोछ
ना सके !
शायद अगली
चुनावों में
आपकी ही
जय जय कार होगी,
पर यदि हम
सेवक से
चौकीदार के
चोले को यूँ ही
बदलते रहेंगे
तो हमारी हार होगी !
