सेवा
सेवा
सेवा से बढ़कर इस जग में, ऐसा कोई पुरुषार्थ नहीं।
नि:स्वार्थ भाव से जो इसको करता, उससे बड़ा धर्मार्थ नहीं।।
उपकार सदा होता है इससे, ईश्वर का मिलता वरदान।
स्वत: कष्टों से मिलती मुक्ति, मन में होता हर्ष महान।।
दान-पुण्य से कुछ नहीं घटता, करके देखो कुछ अच्छा काम।
ईश्वर के तुम प्रिय बनोगे, होगा तुम्हारा जग में नाम।।
भूखों को जो अन्न खिलाता, वस्त्र दान कर शीत मिटाता।
तुष्टि रूप सुख तू पाएगा, जो तृप्ति का आनंद कराता।।
जो भी दिया है तुझको उसने, अमानत वह किसी और की जान।
आंख बंद कर तू उसे लुटा दे, "नीरज" सेवा ही तेरी शान।।