सेना
सेना
सेना सीमा पर खड़ी, ले रक्षा का भार
सोते हम सब चैन से, हँस कर सहती वार।
कफन तिरंगे का पहन, रखा देश का मान,
व्यर्थ नहीं बलिदान हो, खायें शपथ हजार।
अंतहीन क्यों हो रहा, इच्छाओं का भार
मृगतृष्णा की आस में, भटक रहा संसार।
बढ़ता गठरी भार ये, जाना खाली हाथ,
सतकर्मों की पोटली, भवसागर से पार।