Praveen Gola

Romance

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Praveen Gola

Romance

सच्चा प्रेम

सच्चा प्रेम

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निश्चल प्रेम में डूबी तेरे, आज भी मैं तेरे,

दरस की दीवानी हूँ, मैं एक ऐसी नारी हूँ।


जिसने शील ना कभी अपना, होने भंग दिया,

हर बार तेरे प्रेम का केवल रस पिया,

और मन से तेरी सारी हूँ।


ये इक्कीसवीं सदी का तर्पण,

जिसमे बिन छुये ही,

कर दिया तुझे समर्पण, तेरे आगे देखो हारी हूँ।


प्रेम जो लालसा से परे, वक़्त पड़ने पर,

जिसको झुकना ना पढ़े, उस प्रेम पर मैं वारी हूँ।


सच्चा प्रेम समझने में, कई वर्ष लगे,

परंतु वासना रहित रखा उसे तुमने,

तभी तो मैं तुम्हारी हूँ।


हर बार प्रेम में कामुकता,

प्रेम की कोई कसौटी नहीं,

केवल सुगंध भी दे भीनी खुशबू,

गर समझो कि मैं एक नारी हूँ।


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