सच कहूं तो शर्मिंदा हूँ !
सच कहूं तो शर्मिंदा हूँ !


वो चाहती है
मुझे दिलों जान से
डर सा लगने लगा है,
अपनी पहचान से।
अब मिलती है ऐसे,
जैसे किसी अनजान से
अजनबी की तरह मिलता हूँ,
अब मैं दिले-ऐ-नादान से।
सच कहूं तो शर्मिंदा हूँ,
मैं इश्क़ के ईमान से
वो चाहती है
मुझे दिलों जान से।