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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

सबकी तरह तू न हो

सबकी तरह तू न हो

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सबकी तरह,तू न हो

अपने आंसू,यूँ न खो

तू कर्मवीर,शमशीर है

जला भीतर कर्म लो


तू खुद निर्विकार है,

संसार मे यूँ न खो

तोड़ दे मोह-बंधन

सबकी तरह न रो


आलस्य के शीशे में 

अपना मुँह न धो

स्वाभिमान आग में,

प्रताप जैसा तू हो


सत्य के पथ पर तू,

सदैव ही अग्रसर हो

सबकी तरह तू न हो

गम में मुस्कुराता हो


तम के क्षीरसागर में,

चमकता हुआ रवि हो

सब बस रोना रोते है,

रोने में तेरा यकीं न हो


समस्या से लड़ने में तू,

एक तूफां की भांति हो

कोई भी जग-कठिनाई,

न रोक सके तुझे भाई


बाजुओं में ताकत हो

हर समस्या चूर-चूर हो

दूसरों की तरह साखी,

तेरे आंखों में आंसू न हो


दिखा कर्म की वो ताकत

दरिया बीच तेरी राह हो

इसके लिये तेरे भीतर 

दिक्कतें पानी पीती हो


तू ऐसा जलता अंगारा हो

जिसके आगे तो साखी

ज्वालामुखी भी छोटा हो

सबकी तरह तू न हो


इरादों में कुछ ऐसा हो

निराशा में तू आशा हो

जितना ज्यादा दुःख हो

उतना तू निखरता हो


जैसे आग में स्वर्ण हो

वैसे ही तू दमकता हो

तू दुनिया मे अलग हो

तेरे पास वो जज़्बा हो


मौत की घड़ी में भी

तेरे लबों पर हंसी हो

तू ऐसा चंदन वृक्ष हो

कटे तो भी खुश्बू हो।


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