सबका सम्मान करो
सबका सम्मान करो
हम आलग अलग
आकृतिओं में जन्म लेते हैं
हमारे रूप विरले ही
किसी दूसरे से मिलते हैं !
रगों में खून की लाली
भले एक सी हो
पर खून के श्रेणियां
बदलती रहती है !
कोई शांत होता है
कोई उग्रता से काम करता है !
किसी के भंगिमाओं में
मृदुलता छलकता है !
कोई गोरे यहाँ पर
कोई काले बने है !
कोई नाटे यहाँ पर
कोई लम्बे बने हैं !
हमारी सोच की दीवारें
अलग रंगों की बन गयी हैं !
हमारे मनोमस्तिष्क में
तस्वीरें बस गयी हैं !
इन विचारों से हम
यदि चिपके रहेंगे !
तो विकेंद्रीकरण
की ओर बढ़ते रहेंगे !
आये गए दिन हम लोग
एक दुसरे से भिड़ते रहेंगे !
वैमनस्यता के बीज
हम सदा बोते रहेंगे !
बस सामंजस्य से ही
हम पार उतर सकते हैं !
सबकी बातें को सम्मान
देकर के ही उनके
दिलों में बस सकते हैं !
