सबका पेट भरता रब
सबका पेट भरता रब
सबका ही पेट भरता है,रब
सबका ही ध्यान रखता है,रब
चींटी हो या कोई कुंजर हो,
सबको ही देता है,वो छत
सबसे लालची प्राणी हैं,हम
संग्रह-प्रवृत्ति न होती,कम
आज क्या,भविष्य के लिये,
सौ वर्ष का इकट्ठा करते,धन
सबका ही पेट भरता है,रब
सबका ही ध्यान रखता है,रब
इंसानी पेट का क्या करें?,
जिसमे है,लालची छुरा,गजब
सबकी भूख यहां मिटती है,
इंसानी भूख न मिटती,गज़ब
ख़ुदा भी हैरान हुआ,अब
इंसानों का क्या करूं,अब
लोभ असर हुआ,इस कदर
मुझे भी भूल गया,मनु अब
पर टूटेगा,एकदिन रेत महल
जब रुखसत होगा,तू बेअदब
एक सांस न खरीद पायेगा
काम न आयेगा,तेरा ये धन
तब तुझे बहुत याद आयेगा,रब
तब बहुत देर हो चुकी होगी,मूर्ख
सबका भला करनेवाला,ये रब
तब तुझको सजा देगा,गज़ब
इसलिये कहता साखी,सुनो सब
लालच को छोड़ो नेकी करो सब
दान-पुण्य बिना व्यर्थ है,ये धन
नेकी से कमाता ये धन,धरम
ईमान से कमाया हुआ धन
बिन लालच के किया करम
सबका ही पेट भरता है,रब
सबका ही ध्यान रखता है,रब
हमे पहुंचाता सच मे नभ
तब हमे सच मे मिलता,रब
हम होते उसके प्यारे तब
जब छोड़ देते लालच हम।
