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Akhtar Ali Shah

Abstract

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Akhtar Ali Shah

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सबका मालिक एक

सबका मालिक एक

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कविता

सबका मालिक एक

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कौन ध्यान पल पल का रखता पग पग बना सहारा है।

सबका मालिक एक है जिसने सागर पार उतारा है ।।

*

गुलशन के हर गुल में रहता है निखार किसके दम से ।

कलिकाएँ करती है देखो ये श्रंगार किसके दम से।।

 हँसती है हर ओर चमन में आ बहार किसके दम से।

आता है बेजान दिलों में फिर करार किसके दम से।।

 कौन बागबां है गुलशन का किसने रूप निखारा है।

सबका मालिक एक है जिसने सागर पार उतारा है।।

*

प्राणवायु बन तन में अपने कौन यहां इठलाता है।

मीठी नींद सुलाता सब को जीवित कौन उठाता है।। 

अख्तियार सांसों पर किसका दिल सारे धड़कता है।

जीवनदाता बन जीवन भर रिश्ता कौन निभाता है।।

सब रिश्ते नातों से बढ़कर कौन जान से प्यारा है।

सबका मालिक एक है जिसमें सागर पार उतारा है।।

*

हम जाने क्यों करते रहते बेमानी तकरार सुनो।

मालिक कोई और हमारा हम हैं पहरेदार सुनो।।

नाहक बोझ उठाते रहते बेमतलब बेकार सुनो।

जग सराय है रहने वाले सभी किराएदार सुनो।।

दिया सहारा किसने हमको बोलो कौन हमारा है।

सबका मालिक एक है जिसने सागर पार उतारा है।। 

*

धरा गगन जल वायु अग्नि सब किसके हैं उपहार यहां।

कौन इबादत करवाने का रखता है अधिकारी यहां।। 

कलरव रोज पंछियों का करता है क्या इजहार यहां।

किसके आगे नतमस्तक है सारा ही संसार यहां।।

कौन है जिसको बुरे वक्त में हमने सदा पुकारा है।

सबका मलिक एक है जिसने सागर पर उतारा है।।

*

किसने अमृत बरसाया है वन उपवन महकाया है।

धरती का आँचल हरसूं देखो कैसा लहराया है।।

किसने हरी भरी की खेती अन्न यहाँ उपजाया है।

कोई जीव नहीं रहता भूखा ये किसकी माया है।।

क्यों साये से दूर जीव फिर फिरता मारा मारा है।

सबका मालिक एक है जिसमें सागर पार उतारा है।।

*

सबको मिले खुशी के तोहफे गम न आए जीवन में।

दूर नफरतों के साये हों ,प्रेम ही प्रेम रहे मन में।।

सबका हो कल्याण तमन्ना यही रहे मन आँगन में।

नहीं दिखावा हो "अनंत"सच रहे दिलों के दर्पण में।।

दुआ मांगते किससे सब किसके दम से उजियारा है।

सबका मालिक एक है जिसमें सागर पार उतारा है।।

***

अख्तर अली शाह "अनन्त"नीमच

9893788338

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