सब जग अपना
सब जग अपना
एक है धरती एक आकाश,
सूरज चंदा तारे भी एक ।
एक हवा सबको देती जीवन ,
धूप भी ना करती भेदभाव ।
एक परम की हम संतान,
फिर क्यों है मन में बिखराव ।
क्यों लड़ते हम बात बात पर,
जब जीवन का ना कोई ठांव ।
जात पात और धर्म के खातिर ,
जीवन का ना अपमान करो ।
ईश्वर अल्लाह एक ही जानो,
जैसे होते धूप और छाँव ।
बहे प्रेम की निर्मल धारा ,
सुखमय हो यह जग सारा ।
पीर पराई समझे हर कोई,
सबसे हो अपनेपन का नाता ।
संपूर्ण जगत अपना घर है ,
हर जन अपना भाई बंधु है ।
अपने हृदय को करो विशाल ,
जन जन का रखो ख्याल ।
