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Vidya Sharma

Abstract

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Vidya Sharma

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सब जग अपना

सब जग अपना

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एक है धरती एक आकाश,

 सूरज चंदा तारे भी एक ।

 

एक हवा सबको देती जीवन ,

धूप भी ना करती भेदभाव ।


एक परम की हम संतान,

 फिर क्यों है मन में बिखराव ।

 

क्यों लड़ते हम बात बात पर,

 जब जीवन का ना कोई ठांव ।

 

जात पात और धर्म के खातिर ,

जीवन का ना अपमान करो ।


 ईश्वर अल्लाह एक ही जानो,

 जैसे होते धूप और छाँव ।

  

बहे प्रेम की निर्मल धारा ,

सुखमय हो यह जग सारा ।


पीर पराई समझे हर कोई,

 सबसे हो अपनेपन का नाता ।

 

 संपूर्ण जगत अपना घर है ,

 हर जन अपना भाई बंधु है ।

 

अपने हृदय को करो विशाल ,

जन जन का रखो ख्याल ।



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