सब एक हैं
सब एक हैं
धरती पर रहने वाले सब जन एक हैं
जातियों को छोड़ो जात मानव एक है
मेलजोल मिलन भेदभाव विभाजन है
मानव की मानवता पहचान ही नेक है
प्रकृति के पंचभूतों से सब जन हैं जने
मानवता के स्वच्छ भाव से मन हैं बने
एक ही है जब मूल आधार सभी का
फिर क्यों एक दूसरे पर ये तन हैं तने
हो मानव में सदैव सर्वधर्म समभाव
सब जन में सहिष्णुता का स्वभाव
विश्व कल्याण मात्र तभी सम्भव है
जब सब में हो कटुम्बकम वसुधैव
क्षेत्रवाद तो भैया एक जहर है धीमा
कितने सपनों का जाने किया कीमा
है कितनी ही मौतों का ये एक कारक
यही वो संघारक जिसने बनाई सीमा
