सावन
सावन
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बादलों के रथ पर सवार होकर आया है,
अरे देखो देखो सावन है ये,
काली घटाओं के वस्त्रो में तैयार होकर आया है।
जीवनदायिनी नीर अमृत बनकर छाया है।
थी वसुधा कब से प्यासी,
मेघपुष्पं ने छलक छलक के प्रकृति को रमाया है।
मल्हार गूंजे है अत्र तत्र सर्वत्र,
तड़ित ने मेघों को थर्राया है।
बादलों के रथ पर सवार होकर आया है,
धरा की तृप्ति के लिए हर बार आया है।
कल-कल कर के बहता रहे जीवन,
इसलिए अंबर शम्बरं लाया है।