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Kanchan Jharkhande

Tragedy

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Kanchan Jharkhande

Tragedy

सावन का इश्क़

सावन का इश्क़

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मोहे सजन ना भावे रे

जब देख कर उनको 

मन बावरा हुआ,

वो विदेश गये लौट आने को

मैं खड़ी रही प्रीतम इंतजार में,

तू लौट ना आया इस सावन को।

जल्द आकर मुझे संग ले चल

की डोर तो मेरी तुझसे है।

इस चंचल दुनिया की देख

घनघोर रीत बड़ी नकचढ़ी सी है,

मैं प्रीतम तेरी राह में

सब त्याग व्याग करवा करूँ,

जो लौट ना आज भी तू आया

मैं कैसे जलपान करूँ।

तुझे मोह क्या ऐसा पैसों का

तू मुड़कर तक ना देखे रे,

मैं आस ना छोड़ूँ

तेरे आने की।

यह कहते कहते तरस गयी

चार सावन बीत चुके

अब कौन बार-बार यह सावन आवे रे,

सजनी तुझसे कह रही

मोहे सजन ना भावे रे।


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