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Monika Sharma "mann"

Abstract

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Monika Sharma "mann"

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सावधान है पुरुष

सावधान है पुरुष

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कब तक हैवानियत यू नंगा नाच नाचेगी 

कब तक औरत बार-बार बलि चढ़ाई जाएगी

बंद करो यह विनाश नहीं तो ज्वाला आएगी

बन चंडी यह औरत, विध्वंस मचाएगी


नहीं जन्मे गी फिर किसी पुरुष को क्योंकि 

भूल जाता है वह अपनी हदें, 

बन जाता है वहशी जानवर

करता है अपनी मर्यादा को भंग 


मार डालेगी 

तुम पुरुषों को अपनी कोख में

नहीं पनपने देगी तुम्हारे

पुरुषत्व का बीज अपने अंदर 


बनेगी सीता बनेगी, रणचंडी ,

लक्ष्मीबाई यह बन जाएगी 

नहीं होगी अब

यह सती तुम्हें मगर जला जाएगी।


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