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Sapna K S

Romance

4  

Sapna K S

Romance

साथ.....

साथ.....

1 min
424


सुनो,

तुम्हारी ये जो खामोशियाँ हैं ना,

बहुत तरसाती हैं मुझे,

जानती हो तुम,

तुम्हारें होंठो से हरपल की ये जो तकरारें हैं ना ,

पसंद हैं मुझे,

लेकिन तुम्हारा यूँ मुझे देख नजरे झुका जाना,

बरदाश्त नहीं कर सकता,

कह सकता हूँ अपने दिल का हाल,

समझाने की हर कोशिश भी कर के देख ली,

फिर भी तुम्हारा यूँ ना मान ना ... मान तो सकता हूँ मैं,

लेकिन तुमसे बिछड़न अब नहीं सह पाऊँगा मैं,

हाँ,

तुम्हारा कहना ठीक तो था,

नहीं थी मुझे मुहब्बत तुमसे,

पर अब हैं ...

नहीं समझता था तुम्हें,

पर अब खुदको भी समझाना मुश्किल सा हो गया हैं मेरे लिए,

दूर रहूँ तो बैचेनी रहती हैं,

पास आऊँ तो बैचन हो जाता हूँ,

दर्द में हो तुम,

जान चुका हूँ अब तुम्हें धीरे - धीरे ,

सोचता था मेरे दुख सा जग में कुछ और हैं ही नही,

पर तुम्हारे आगोश में रहकर,

अपने अस्तित्व को भी कमजोर सा महसूस करने लगा हूँ ,

कुछ खुशियों की तलाश में भटक रहा था मैं,

अब तुम्हारी हर खुशियों को अपने नाम से,

तुम्हारे जीवन में सजाना चाहता हूँ मैं,

चलो हमसफर ना सहीं,

लेकिन हमदर्द कह कर पुकार तो सकती हो ना मुझे,

एक मौके की बात नहीं करूँगा....

पूरे जीवन का तुम भरोसा मान सकती हो ना मुझे।



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