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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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साथ साथ

साथ साथ

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साथ साथ चले हम

 और आज भी साथ साथ हैं

मंजिल एक ही है

 शब्दों ने हमारी राहें

 अलग अलग कर दीं हैं पर

 फिर भी हम साथ साथ है

ये अंतर जो हममें और तुममें है

रास्तों के वाबस्ता

वो इतना ही है न कि

 तुम मुझे स्वीकार हो

 और मेरा होना

 तुम्हें अच्छा नहीं लगता है

वजह बताते तो यकीनन ये

शिकायत भी जाती रहती ।


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