साथ मेरे तुम आ जाना
साथ मेरे तुम आ जाना
अपने आज छुपा लूं कल तेरा,
तो साथ मेरे तुम आ जाना,
जफ़ा भूल अपना लूँ तुझको,
तो साथ मेरे तुम आ जाना।।
बेरहम बड़ी है जालिम दुनिया,
न जीना अब इस में है आसां,
घर कहीं एक महफूज बना लूँ,
तो साथ मेरे तुम आ जाना।।
अभी जमाने ने देखे हैं कहाँ,
मेरे हुनर और वो नखरे सारे,
करतब मैं कुछ और दिखा लूँ,
तो साथ मेरे तुम आ जाना ।।
लगी है आग कब से सीने में,
जमाने को ही न फना कर दूं,
जो ठंडी हो, फिर ये राख जरा,
तो साथ मेरे तुम आ जाना ।।
जगती आंखों से हमने जाने,
कब कब कितने ख्वाब हैं देखे,
बमुश्किल आंख लगी, खुल जाए,
तो साथ मेरे तुम आ जाना।।
ये चाहत है कि तेरे साथ ही,
बाकी उम्र बसर अब हो मेरी,
पार कर लूं कुछ और पड़ाव,
तो साथ मेरे तुम आ जाना ।।
हर्फ़ सब ही तो नहीं हैं साफ,
ना ही सब हैं अजीज दिल के,
बस खत्म कर लूं ये किताब,
तो साथ मेरे तुम आ जाना ।।
साफ़गोई की कीमत चुकाई,
हर महफ़िल में तन्हा होकर,
जलेबी से हौं ये सब अल्फाज़,
तो साथ मेरे तुम आ जाना ।।
तब तुम्हारी ही तो जिद थी ये,
कि मुक्कमल हो सभी मंजिल,
ये असरार दिनेश अब हुए हैं पूरे,
तो साथ मेरे तुम आ जाना ।।