सार्थक जीवन
सार्थक जीवन
तीव्र बदलती इस दुनिया में,
ये चलन है बड़ा ही निराला।
स्थिर तो हैं फकीर लकीर के,
बदलाव है क्रांति की ज्वाला।
रुका हुआ जल सड़ जाता है
और निर्मल रहती है जलधार।
नई बात है बनती विवाद जड़,
बड़ी देर में मानता है ये संसार।
युग-निर्माता कहे जाते हैं शिक्षक,
और युवा आज के कल के कर्णधार।
सिद्धांत सरल व्यवहार कठिन अति,
खुद जल ही चमका सकते हैं संसार।
खुद हित चमक क्षणिक उल्का सी,
ज्योति परहित दिनकर सी असरदार।
लम्बी निरर्थक भूमिका रंगमंच पर,
पर सार्थक लघु श्लाघनीय किरदार।
हम कितना जिए नहीं महत्त्वपूर्ण है?
कैसा जिए यह जब जानेगा संसार?
सकारात्मक प्रेरणा दे सके जगत को,
तब ही धरा आगमन लक्ष्य होवे साकार।