अनामिका वैश्य आईना Anamika Vaish Aina
Tragedy Classics
साँझ सजाती
प्रिय को घर लाती
ये माहौल बनाती
मन डोलता
दिली बात बोलता
प्रेम रस घोलता।
साँझ सुहानी
करती मनमानी
क्षणिका सजा मन
होती बेगानी
सूर्य छिपाये
गोदी में ये अपनी
दे प्रेम की थपनी।
बसंत ऋतु
देश भक्ति गीत
आंखों में बसे...
बिजली सी गिर ...
बहुरूपिया
माँ - मुक्तक
गीत अधूरा
डगर
मैं हिन्दी हू...
हिन्दी पर हाइ...
मां-बाप के अपनी नजरों के देखे सपने होते हैं. मां-बाप के अपनी नजरों के देखे सपने होते हैं.
आंसुओं की धार, सांसों की तार पर इसके अपना पैर रखा आंसुओं की धार, सांसों की तार पर इसके अपना पैर रखा
सिर्फ अबला बन रह जाती हूं,कोई तो बताए मुझे क्यों मैं स्त्री होकर भी एक सशक्त स्त्री सिर्फ अबला बन रह जाती हूं,कोई तो बताए मुझे क्यों मैं स्त्री होकर भी एक सश...
लोगों की जमात एकदम उभरकर लोगों की जमात एकदम उभरकर
होड़ लगी है कितना का कितना हसोत लें। होड़ लगी है कितना का कितना हसोत लें।
अपने मुताबिक जीने के कभी हकदार थे ही नहीं। अपने मुताबिक जीने के कभी हकदार थे ही नहीं।
स्याही न जाने क्यों, उस पन्ने की तलाश में है। ... स्याही न जाने क्यों, उस पन्ने की तलाश में है। ...
किसी विपदा, दुख या त्रासदी में पूरे मनोयोग से। किसी विपदा, दुख या त्रासदी में पूरे मनोयोग से।
अंत सत्य ,बस यही तथ्य है, तुम भी सुनलो सावन। ... अंत सत्य ,बस यही तथ्य है, तुम भी सुनलो सावन। ...
तू बरस जा ए सनम आज़म पे शबनम की तरह। तू बरस जा ए सनम आज़म पे शबनम की तरह।
मेरे ख़्याल से... तुम एक ख़्याल ही बेहतर थे... झूठ में लिपटे जवाब... तुम एक सवाल ही मेरे ख़्याल से... तुम एक ख़्याल ही बेहतर थे... झूठ में लिपटे जवाब... तु...
क्या उसको कभी मेरी अब याद नहीं आती। क्या उसको कभी मेरी अब याद नहीं आती।
जज्बातों को रौंधते हुए पल में बदलते मुकद्दर देख लिए। जज्बातों को रौंधते हुए पल में बदलते मुकद्दर देख लिए।
तेरी उलफ़त में बुराई तो नहीं माँगी थी ! तेरी उलफ़त में बुराई तो नहीं माँगी थी !
पत्थरों के छोटे बड़े टुकड़े, रेत, कीचड़... मटमैला जल पत्थरों के छोटे बड़े टुकड़े, रेत, कीचड़... मटमैला जल
यह तो बंद कमरों में रहते हैं जिन्हें हवा का एक झोंका भी मयस्सर नहीं यह तो बंद कमरों में रहते हैं जिन्हें हवा का एक झोंका भी मयस्सर नहीं
माँ कहती थी ! सुबह का सपना !! सच होता है ..... माँ कहती थी ! सुबह का सपना !! सच होता है .....
छल लेना ज्यादा आसान हो जाता है या छला जाना ज्यादा आसान है। छल लेना ज्यादा आसान हो जाता है या छला जाना ज्यादा आसान है।
ज़िंदगी सच बता, क्या तू हिसाब लेती है... बचपन में ये सिखलाया के इंसान बनना है... ज़िंदगी सच बता, क्या तू हिसाब लेती है... बचपन में ये सिखलाया के इंसान बनना है...
जब कोई सो नहीं पाता है कई दिन और रात तो सोचो कैसा लगता है, जब कोई सो नहीं पाता है कई दिन और रात तो सोचो कैसा लगता है,