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Shivanand Chaubey

Inspirational

5.0  

Shivanand Chaubey

Inspirational

सामाजिक मूल्य

सामाजिक मूल्य

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संबंधों पर क्या करे शोध ? मृत जब सामाजिक मूल्य बोध ।।

जब पुत्र पिता को कहे मूढ़, हो जाती तब नरता विमूढ़।।

जननी जब हो जाती अशक्त, उस पर फिर सूत का क्रुद्ध रक्त।।

मर जातें है तब सभी मूल्य, जब अपमानित नर पिता तूल्य।।

हो मूर्त स्वार्थ जब मरे नेह, जब पूजित केवल निजी देह ।।

करुणा हो जाती जभी लुप्त, सामाजिक शुचिता हो विलुप्त।।

करते गुनकर निज हानि लाभ, जब इक दूजे का गुणानुवाद।।

आती तब रिश्तों में खटास, भरने लगता चित में मवाद।।

नित उपजाते नर गरल पौध, जब समरसता का मंत्र त्याग।।

तब जन-गण में उठता विभेद, जल जाती चित में जटिल आग।।

है स्थापित कुछ अतः मूल्य, जिसको करना नित शिरोधार्य ।।

जिसमे सबका हो निहित लाभ, करना है नर को वही कार्य ।।

कुछ मूल्यों से चलता समाज, हो हर मानव हित दृष्टि एक ।।

चलना उस पर जो मान्य पंथ, करना भूले मत पथ अनेक ।।

सबके गरिमा का एक सूत्र, हो पृथक जाति या संप्रदाय।।

सबके हित बरसे सहज प्रेम, हो सबके हित में एक न्याय

।।

कुछ मूल्य सनातन सदा सत्य, नर पर पीड़ा से रहें दूर ।।

ऐसा कुछ हो नित नियत कर्म, जिससे औरों को मिले नूर ।।

कोई समाज हो देश काल, है सत्य सनातन धवल प्रीत ।।

हो मूल्य यही सबका प्रधान, है युग-युग से अनुमन्य नीत ।।

धारें चाहे कोई विचार, हो मूल्य किन्तु इक राष्ट्रवाद ।।

जिस धरती माँ ने लिया गोद, उस पर न उठे कोई विवाद ।।

जिसको भी पथ में लगे ठेस, ले पृथक हाथ उसको सँभाल ।।

यह मरता है क्या कभी मूल्य, चाहे कोई हो समय काल ।।

हो दूजे को भी सघन क्लेश, यदि किसी एक को मिली पीर ।।

इक की आँखो में अगर अश्रु, दूजे के दृग से बहे नीर ।।

नित करें रक्ष्य अनुमन्य मूल्य, निज अर्पित करके हृदय प्राण ।।

तब ही होगा प्रबलित समाज, होगा सच गुरुता का विहान ।।

रक्खे अग्रज हित नमित माथ, सब जन परिजन हित शुभ्र भाव ।।

मूल्यों से हो सब विहित कर्म, नित नैतिकता का शुचि प्रभाव ।।


 

 

 

 



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