सागर तट
सागर तट
देखो चांद डूब रहा है
लड़िया समेट कर तारे भी चल पड़े घर की ओर
आया प्रभात हौले से छेड़ छेड़ मीठी तान
कहा चलो अर्चना सागर तट
परछाइयां सूरज की बिखेर रही लहरों पर
सिंदूरी रंग स्पर्श पा किरणों का रेत बदली कनक के ढेर में
चलो मिलकर गाए कोई गीत पुराने या
फिर बेपरवाह हो झूम उठे
कुदरत के स्वर लहरी पर आती पंछी की धुन के साथ
थाप दे रही लहरों की उफान हवाएं बनी है साज
उनकी घंटियां छेड़ रहे तान आरती की
चलो खो जाए इन संगीत में बटोरे
कुदरत के खजाने को संजोए स्मृति के धरोहर को!