रूहानी इश्क़
रूहानी इश्क़
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जब तफ़्तीश हुई
इस तन्हा दिल की
कुछ खालीपन था
कुछ गीलापन था
कुछ शायरियां थी
कुछ दरारें ..बस औऱ क्या !
न गुनाह मिला
न गवाह मिला
न दलील दिया
न वकील किया
ख़्वाब भी भला
कोई सुबूत छोड़ता है ?
तेरा वजूद न मिला
जो बरक़रार था
जो धड़कन में, सांसों में
रगों में एकसार था।
तेरे जाने के बावजूद भी
तेरा ही इख्तियार था
जो बन के 'मैं' अभी
तलक यहीं इसी दयार था
रूह भी भला कभी दिखी है ?