रूबरू ए इश्क़
रूबरू ए इश्क़
डरी थी सहमी थी, अवाज में कर्राहट थी,
कदम आगे बढ़ रहे थे, पर चाल में थर्थाहट थी।
धीरे धीरे मैं अपनी नई क्लास की ओर बढने लगी,
कदम जैसे बढ़े , मेरी नजर उसे ही देखना चाहती थी।
कोने में मै अपनी क्लास की डोर पे खड़ी थी,
और अनजाने में मेरी नजर एक शख्स से जा लड़ी थी,
नजरें हटाई मैने वो भी इधर उधर देखने लगा,
पहला दिन स्कूल का और उफ मुझसे ये क्या हुआ,
ना चाहते हुए भी मेरी नजर उससे बार बार लड जाती थी,
पर शायद मेरी नजर उसे ही देखना चाहती थी।
दिन बीते, महीने बीते, और उस दिन से मुझे आस हुई,
जब पहली बार उससे मेरी स्माइल पास हुई।
दोस्तों को पता चला तो दोस्तों ने चने के झाड़ पे चढ़ा दिया,
चिढाने लगे मुझे, और उसे मेरा फ्यूचर हस्बैन्ड बना दिया।
मै ही नहीं जिसका ये हाल था, दूसरी तरफ भी कुछ ऐसा ही बवाल था।
कुछ ही दिनों में हम रिलेशनशिप में आ गए,
और पूरी क्लास की जुबान पर छा गए।
फरवरी की वो 14 तारीख इतनी फैन्सी थी,
और उस ऐज में तो वो सबकी फैन्टसी थी।
वक्त बीता तो धीरे धीरे झगड़े होने लगे,
और छोटी छोटी बातो पर हम अपना आपा खोने लगे।
इतना हम दोनों एक दूसरे को भला बुरा कहने लगे,
पास नहीं थे उतना जितना दूर जाने लगे।
तब जाना शायद वो सिर्फ एक फिल्मी कहानी थी,
इश्क़ नहीं था, वो सिर्फ एक नादानी थी।