रुपऐ का मान
रुपऐ का मान


डॉलर का तो,
ख्याल मुझे भी आया था,
जिसने मुझको भी,
भरमाया था,
रोज रातों में,
ख्यालों में आकर,
नींद से मुझे जगाया था,
मैं भी हैरान,
और,
परेशान था,
निर्णय ना रुपए,
और डॉलर में,
कर पाया था,
मन हुआ,
विदेश जाऊं
पैसे को,
डॉलर में कमाऊ,
सामान भी,
अपना बांध लिया,
खाना भी,
साथ लेकर,
जहाज में,
जाने को रवाना हुआ,
पहुंच गया,
जब जाने को,
मन में कुछ हलचल सा हुआ,
बारिश एक घनघोर हुई,
जो खुशबू माटी की,
छोड़ गई,
सहसा मन में,
एक निर्णय हुआ,
जाने का सपना,
रद्द हुआ,
मां की रोटी,
बहुत याद आई,
जो फिर घर में,
मुझे की खींच ! लाई,
बस,
अब यही मैं रह जाऊंगा,
देश की,
माटी के लिए,
कुछ कर जाऊंगा,
अगर नहीं बन सका,
बहुत बड़ा आदमी,
तो क्या ?
नहीं पैसे डॉलर में,
कमाऐ,
तो क्या, ?
माटी की सेवा कर,
किसान बन जाऊंगा,
कर किसानी,
बेटे का फर्ज निभाऊगाँ,
मां का,
और धरती का,
कर्ज कैसे उ
तारु,
पहले यह,
कर्ज का फर्ज,
नामक पाठ,
पढ़ कर आऊंगाँ,
डॉलर नहीं तो क्या,
रुपया से काम चला लूंगा ?
बस अब यही,
मैं रह जाऊंगा,
देश की माटी के लिए,
कुछ कर पाऊंगा,
जितनी चादर है,
उतने में,
सब कुछ करके दिखाऊंगाँँ,
डॉलर कमाने की धुन में,
माटी को ना भुलाऊंगा,
कम है,
तो क्या हुआ ?
रुपए का मान बढ़ाऊगाँ,
रुपए का मान बढ़ाऊगाँँ,
माटी को अपनी छोड़कर,
जन-जन की भावना,
को तोड़कर,
डॉलर कमाने नहीं जाऊंगाँ,
भीड़ में डॉलर की,
कहीं भी,
खुद को नहीं घुमाऊंगा,
देश को,
कृषि प्रधान,
देश बनाकर,
इसी में गौरव पाऊंगाँँ,
डॉलर का मोह छोड़कर,
रुपए का मान बढ़ाऊगाँ,
और रुपए की,
गरिमा का गुड़गांन कर,
यहीं रहकर,
बस,
यहीं पर रहकर,
बन एक आधुनिक,
यांत्रिकी युक्त किसान,
डॉलर से ज्यादा कमाऊगाँँ,
देकर देश को,
नई तकनीकी,
किसानी में नाम बनाऊंगाँ,
डॉलर का मोह छोड़,
रुपए का मान बढ़ाऊगाँ।
डॉलर का मोह छोड़,
रुपए का मान बढ़ाऊगाँँ,
और रुपए की गरिमा का,
गुणगान गाऊंगाँँ।