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Navin Joshi 'Naval'

Inspirational Others

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Navin Joshi 'Naval'

Inspirational Others

ऋतुराज बसंत

ऋतुराज बसंत

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पगड़ी, पीत वसन तन,

देख सखी ऋतुराज हैं आए ।।


सकल तमस को किये पराजित, 

मंद-मंद मुसकाये दिनकर !

नव बसंत का स्वागत करने,

शगुन गीत मृदु गाये अम्बर,  

कुसुम- कली निज लोचन खोले,

नवल बसंत मन ही मुसकाये ।

देख सखी ऋतुराज हैं आए ।।


प्रकट भई माँ हंस वाहिनी,

वीणा अरु पुस्तक ले कर में !

आभूषण धरणी ने धारे,

नव उत्सव यह क्षिति-अम्बर में !

ताल, तलैया, सरिता विहसे,

कोयल मीठे बैन सुनाये।

देख सखी ऋतुराज हैं आए ।।


वन-उपवन में चहल पहल है,

मंद पवन, चातक आतुर हैं !

कैसी धूम मची धरणी में, 

रतिविलास को खग आतुर हैं !

ले मकरंद मधुप सब गूंजत,

सुर दुर्लभ क्षण कहि नहि जाए।

देख सखी ऋतुराज हैं आए ।।


सकल विटप अब भये पल्लवित, 

चहकत शुक-पिक निज ही वाणी, 

मानुष, जलचर, खग, चौपाये,

सखी आनंदित हैं सब प्राणी !

अबके फाग हमहि संग खेलो,

जाने न दूं बिन रंग चढ़ाए।

देख सखी ऋतुराज हैं आए ।।

     


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