आत्मपथ
आत्मपथ
फूल भी स्वीकार मुझको शूल भी स्वीकार हैं !!
मिल पड़ेंगे राह में, वरदान ले अगणित खड़े हैं,
ध्यान से चलना डगर में कपटमृग भी तो बड़े हैं !
किंतु होते हैं सफल निश्चित वही नित इस धरा पर,
कर्मपथ पर अडिग होकर संकटों से जो लड़ हैं !!
घोर तम से भरे मग में लक्ष्य चलकर मिल सके तो,
उस अँधेरी राह की वह धूल भी स्वीकार है !!
राह में कांटे बिछाते देख लूं तो चुप रहूँगा,
मैं स्वयं निज पथ सुगम कर सभी को आशीष दूंगा !
वेदना का मोल करके क्यों करूं अनुनय-विनय भी,
मैं स्वयं के अश्रु से ही आग दिल की बुझा लूँगा !!
है नहीं अनुरूपता, तो प्रेम कैसे पल सकेगा ?
निष्कपट अनुराग में पर, भूल भी स्वीकार है !!
छोड़ दूं हर कामना, हर स्वप्न को मैं तार कर लूं ,
प्रेम पूर्वक जो मिले हर वस्तु अंगीकार कर लूं !
सिर उठा नित, अडिग होकर चल पडूंगा आत्मपथ पर,
बेचकर निज प्रतिष्ठा, क्यों सम्पदा स्वीकार कर लूं ?
सादगी ही श्रेष्ठ है, सुरभोग की इच्छा कहाँ है ?
मान्य है अनुकूल भी, प्रतिकूल भी स्वीकार है !!
फूल भी स्वीकार मुझको शूल भी स्वीकार हैं !!
