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नवीन जोशी 'नवल'

Abstract

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नवीन जोशी 'नवल'

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खेलूॅं कलम से होरी

खेलूॅं कलम से होरी

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खेलूॅं कलम से होली फाग में, खेलूॅं कलम से होली ।

खेलूॅं कलम से होली !!


अंतर्मन–मंदिर से निकसी 

सजकर ‘रचना’ गोरी !

भा गई है मेरे मन को  

जिसकी सूरत भोली !

आज कलम की पिचकारी से 

अंगिया भिगो दूॅं तोरी....आज मैं खेलूॅं कलम से होली !! 


करुण व हास्य गुलाल मिला दूॅं,

प्रेम के सागर में !

रस श्रृंगार से रंग बना दूॅं

कागज की गागर में ! 

अलंकार के अस्त्र निकालूॅं

व्यंग्यबाण की गोली....आज मैं खेलूॅं कलम से होली !! 


दो आशीष शारदे माॅं अब 

सफल साधना कर दो, 

करूॅं सदा साहित्य साधना 

अम्ब विमल मति भर दो,

ज्ञानदायिनी नवल ज्ञान से

भर दो मेरी झोली....आज मैं खेलूॅं कलम से होली !


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