ऋतुराज बसंत
ऋतुराज बसंत


पवन, पंछी, पुष्प के सरताज बसंत
षडऋतु के ऋतुराज बसंत।
ये आए महके चमन,
पतझड़ कर ले त्वरित गमन
षडऋतु के ऋतुराज बसंत।
ओ सिमेंटवन के कोकिलों ! उठो, दौड़ो !
महेमाँ जंगल के कभी हो लो..,
फूल, टहनी, पेड़ों के सं
ग डोलो
षडऋतु के ऋतुराज बसंत।
यहाँ कहीं खुशियों के गुलाल उड़ते,
और कहीं दिल-दिल से जुड़ते।
अपने तीक्ष्ण सारे शूल-भूल,
नशे में मदमस्त यहाँ बबूल।
तेरा दम्भ यहाँ फ़िज़ूल ,
क्योंकि षडऋतु के
ऋतुराज बसंत ...!