STORYMIRROR

Pradeep Kumar Panda

Abstract

3  

Pradeep Kumar Panda

Abstract

ऋतु

ऋतु

1 min
365

आया ऋतु राज आज ऋतु का श्रृंगार है


मन मोहक साज़ साज़ बिखरी बहार है


डाल रहा फूल फूल देखो गले हार है


कैसा लुभावना ये रूप तेरा करतार है।


वृक्षों ने पीत पीत पाँवड़े बिछाए हैं


प्रिय बसंत आया अनंत अब बहार है


कलियाँ अलियों को देख फूली न समाती हैं


खेत खेत झूम रही सरसों कचनार है।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract