ऋतु
ऋतु
आया ऋतु राज आज ऋतु का श्रृंगार है
मन मोहक साज़ साज़ बिखरी बहार है
डाल रहा फूल फूल देखो गले हार है
कैसा लुभावना ये रूप तेरा करतार है।
वृक्षों ने पीत पीत पाँवड़े बिछाए हैं
प्रिय बसंत आया अनंत अब बहार है
कलियाँ अलियों को देख फूली न समाती हैं
खेत खेत झूम रही सरसों कचनार है।।