STORYMIRROR

Meera Ramnivas

Abstract

3  

Meera Ramnivas

Abstract

रोटी

रोटी

1 min
293


रोटी चाहे जैसी हो

गोल हो, चौरस हो

गेहूं की हो जौ की हो

मुसीबत में चाहे घास की हो

रोटी तो रोटी है

भूख भगा देती है

हर घर की रोटी का

स्वाद अलग होता है

रोटी में पकाने वाले का

भाव समाया होता है

इसीलिए तो 

मां के हाथ का खाना

स्वादिष्ट लगता है

मां की थाली के आगे

छप्पन भोग भी

फीका लगता है

सुबह छः बजे पार्क में

टहलते हुए 

ताजी हवा के साथ 

रोटी की सुगंध

बरबस ध्यान खींचती है

जो मां की पकाई

रोटी की सुगंध से

मिलती जुलती है

पार्क की दीवार से सटकर

फुटपाथ के ऊपर 

एक मजदूर परिवार

का खाना पक रहा होता है

चूल्हे के आस पास 

बच्चा और पति

बैठा होता है

महिला बना रही होती है रोटी

मेहनत की मिठास से

महक रही होती है रोटी

रोटी की सुगंध का

एक और कारण है

इस रोटी की तैयारी 

ब्रह्म मुहूर्त में हुई होती है

ब्रह्म मुहूर्त के अमृत की बूंद

आटे में में मिल गई होती है

मुझे मां की चक्की याद आ जाती है

ब्रह्ममुहूर्त में जागकर 

मां आटा पीसा करती थी

चक्की के मधुर नाद से 

मेरी नींद खुला करती थी

पिता के हाथ से बोये हुए अन्न में

बहुत ही मिठास थी

मां के हाथ से पिसे हुए आटे

में खास बात थी

इसीलिए रोटियां महकती थीं

तनमन को तृप्त करती थीं

अब रोटी में वो बात नहीं है

अब रोटी में वो स्वाद नहीं है

हाथ पर रोटी रख कर 

खाने का आनंद ही

कुछ और था

ओक बना कर

पानी पीने का

आनंद ही

कुछ और था

सोचती हूं 

वो कितना, सरल

तामझाम रहित 

दौर था।

भोग-विलास रहित

जरुरत का

दौर था।।

    



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract