रोटी
रोटी
रोटी
मैंने देखा था जब वो रोटी छिपा के लाती थी
मुश्किल और गरीबी में भी मुझे भर पेट खिलाती थी।।
ज़ख्म भरे हाथ थे उसके पर फिर भी वो मुस्काती थी
बिन डाँटे प्यार से मुझको हर बात मुझे समझाती थी।
देख मुझे तक़लीफ़ में यारो वो माँ कहाँ सो पाती थी।।
खुद रहती थी भूखी मुझे भर पेट खिलाती थी।
मैंने देखा था जब वो रोटी छिपा के लाती थी।।
