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Kavita Sharrma

Abstract

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Kavita Sharrma

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रोटी की कीमत

रोटी की कीमत

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गरीब होना खुद में ही सजा है

दो जून रोटी के लिए कितना भटकता है,

मजदूर से पूछो भूख का दर्द

बिना खाये कितनी बार बिता देता है वक्त,

अगली बार जब भी थाली में खाना खाओ

एक भी दाना जाया न करोगे यह कसम खाओ ।

जिन घरों में हम सुख चैन से है रहते

उनको बनाने का काम ये मजदूर ही हैं करते,

क्यों उन्हें भर पेट रोटी भी न मिले

गुरबत में में उनका जीवन बीते,

कब इन्हें इनका हक मिलेगा

देश का दिल कब पिघलेगा।

दो जून रोटी सबको मिले

हर कोई अपनी जिदंगी खुशी से जी ले।



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