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Babu Dhakar

Abstract

4.5  

Babu Dhakar

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रोष में

रोष में

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सर्द मौसम में बरसात की बूंदों का मन

ओस के अंहकार को मिटाने में है मगन

ये सर्दी पहले कुछ गर्मी का अहसास करवाकर

इस तरह बारिश से करती है अपना रोष प्रकट ।

पहले कुछ ,बाद में और कुछ तय करती है

गर्मी बन अपनी दया दिखाने के बाद सर्दी से डराती है

ये सर्दी इस सांझ सांझ में थोड़ी कम लगती है

यहीं तो है जो सुबह सुबह जम कर लगने लगती है ।

आहत करते अपने हित नफरतों और बेबसियों में ऐसे

सरकार विरोधी इन प्रदर्शनों में खामोशियां हो जैसे

स्पष्ट बता कर सर्दी से बच जाना ही बुद्धिमानी है

ये सब क्या हैं जो पूंछे कि सर्दी तुममें कितनी गर्मी है ।

सर्द मौसम में गर्द फैलता देख

बसंत शायद जल्द करने आए अंत

पत्ते गिराकर इसने ऐसे अपने पैर फैलाए है

जैसे ये सुप्रीम कोर्ट भी हस्तक्षेप कर कमेटी बनाए है ।

बहुत हुआ क्या हुआ हमें कुछ खबर नहीं

बहुत अधिक हुआ काम पर सब्र नहीं

फैलती ही है रोशनी सुबह के आने पर

इस रात को मजबूर ना करों रुकने पर ।

सर्द मौसम में बरसात की बूंदों का मन

ओस के अंहकार को मिटाने में है मगन

ये सर्दी पहले कुछ गर्मी का अहसास करवाकर

इस तरह बारिश से करती है अपना रोष प्रकट ।



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