रोशनी
रोशनी
जगमगाने की बिल्कुल ख्वाइश नहीं है मेरी
बन्द चराग़ से निकली हुई एक रूह है मेरी,
अब भला तुझे क्या बताऊँ मेरा दर्द,साखी
मेरे दर्द से ही निकली हुई मुस्कान है तेरी,
ज़माने की रोशनी से बहुत अंधा हो गया हूं
तेरी घनी जुल्फों में खोई हुई है रोशनी मेरी।

