रोने का हुनर
रोने का हुनर
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रोती आंखों को मुस्कुराकर दबाने का
मुझमें हुनर है आंसुओं को छुपाने का
महफिल में रोऊं तो कोई पता नहीं पाता
दिल अपना दर्द किसी को जता नहीं पाता
कभी यूं बाथरूम में भी छुप कर रोया है
कभी रोते रोते तकियों को भिगोया है
कभी दिन भर बंद होकर कमरे में रोती हूं
कभी बिस्तर में रात भर रोते रोते सोती हूं
अनजान ना बनो ऐसा सबके साथ होता है
चेहरा हंस लें पर दर्द तो दिल में होता है
एक उम्र के बाद अक्सर यही होता है
हर कोई कभी ना कभी छुपकर रोता है।