रोक सको तो रोक लो
रोक सको तो रोक लो
हाँ, बिल्कुल ठीक सुना तुमने
मुझे भी स्वतंत्रता चाहिए
मुझे भी आज़ादी चाहिए
हसरतों के पंख लगा कर
परवाज को ऊंचा करना चाहती हूँ
अधूरे सपनों को साकार करना चाहती हूँ
जमाना बदल चुका है
हवाओं ने भी अपना रुख बदला है
मौसम का अंदाज़ भी कुछ बदला बदला-सा है
चूल्हा चौकों की सरहदों को चीरकर
पुरुषों से कंधा मिलाकर
कदमों की रफ़्तार को बढ़ाकर
उन्मुक्त गगन को छूने की तमन्ना मन में आज़ जागी है
रुकना भी चाहूँ तो रुकना अब मुमकिन नहीं
झुकना भी चाहूँ तो झुकना अब मुमकिन नहीं
तुमने ठीक कहा कि मैं नारी हूँ
मगर नारी के भी कुछ सपने होते हैं
कुछ कर गुजरने की तमन्ना होती है
कब तक मुझको अबला नाम से पुकारोगे
कब तक मेरी आज़ादी को जंजीरों से बाँधोगे
माना कि मैं नारी हूँ मगर कमजोरी नहीं
आजादी के दौर में मुझ पर किसी का ज़ोर नहीं
धरती से लेकर चांद तक अब मेरी ही चर्चा होगी
रोक सको तो रोक लो, टोक सको तो टोक लो
घर की सीमाओं को लांघकर
निकल पड़ी हूँ चांद की।