रो पड़ती है
रो पड़ती है
दर्द जब सहन न होता
रो पड़ती है स्त्रियां
रो कर आँसुओं संग
बहा देती है
कतरा दर्द का
चाहती है आए कोई चुपके से
आँसू न पोंछे तो
कोई बात नहीं पर
दर्द की वजह पूछे
टुकड़ा छोटा सा दर्द का
है जो दिल में छिपा
आँसुओं संग बह न पाया जो
अब तक
निकाल उसे
बोले दे
प्यार भरे दो शब्द
चीख की आवाज़
जो न सुन पाया कोई
अब तक
एक बार सुन
सहला दे हौले हौले
सिर रख कंधे पर
फिर फिर
हो जायेगी
खुश उस पल
